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बहुचर्चित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संबंधी संविधान संशोधन (122वां संशोधन) विधेयक, 2014 पर लोकसभा में सरकार कांग्रेस का समर्थन पाने में सफल रही। लेकिन सरकार की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी, जहां सरकार के पास विधेयक पारित कराने लायक बहुमत नहीं है। जीएसटी लागू होने से घरेलू स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के विनिर्माण, बिक्री और उपभोग पर एक समान और व्यापक कर व्यवस्था लागू होगी। इसके तहत केंद्र एवं राज्यों के सभी अप्रत्यक्ष कर समाहित हो जाएंगे, जिनमें उत्पाद शुल्क, सेवा कर, बिक्री कर, मूल्यवर्द्धित कर, चुंगी, विलासिता व मनोरंजन कर और अन्य उपकर व अधिभार शामिल हैं।
इसमें राज्य और केंद्रीय जीएसटी के दोहरे ढांचे को समाहित करने की कल्पना की गई है। एकीकृत जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं पर विभिन्न राज्यों द्वारा नियंत्रित बिक्री कर की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करेगा। राज्य एवं केंद्रीय करों के बीच के अंतर को कायम रखते हुए जीएसटी सभी अप्रत्यक्ष करों को सरल बनाएगा। कथित तौर पर इसके कई लाभ हैं। मसलन, विभिन्न करों को एकीकृत करने से इसका प्रबंधन सरल हो जाएगा। जीएसटी लागू होने से सकल घरेलू उत्पाद में भी एक से दो फीसदी वृद्धि का अनुमान है और उपभोक्ताओं को भी प्रतिस्पर्धी मूल्य से राहत मिलेगी। पर राज्यों को इसकी चिंता है कि अगर केंद्रीय बिक्री कर को खत्म कर दिया जाता है, तो उनके कर राजस्व का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा। राज्यों को होने वाली इस क्षति की भरपाई के लिए शुरू के कुछ वर्षों के लिए एक सांविधानिक ढांचे की व्यवस्था की गई है। मसलन, वस्तुओं के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने की स्थिति में दो वर्षों के लिए एक फीसदी का अतिरिक्त कर लगेगा, जो केंद्र द्वारा वसूल कर राज्यों को सौंप दिया जाएगा। हालांकि कुछ राज्यों को इस दर को लेकर आपत्ति है। इसके अलावा, शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, जबकि पेट्रोलियम पदार्थ अभी जीएसटी के अधीन नहीं है। कई राज्यों के लिए ये दोनों राजस्व के बड़े स्रोत हैं।
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इसके अलावा, कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे निपटने की जरूरत होगी। मसलन, इससे एक तटस्थ राजस्व दर अस्तित्व में आएगी। तटस्थ राजस्व दर वह दर है, जिससे कर ढांचे में बदलाव होने पर भी राज्यों के राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह दर 20 से 24 फीसदी के बीच रहेगी। हालांकि सरकार अभी इस पर विचार ही कर रही है।
जीएसटी मौजूदा केंद्रीय बिक्री कर की जगह लेगा, जो उत्पादन स्थल आधारित कर है। हालांकि गुजरात एवं महाराष्ट्र जैसे विनिर्माण करने वाले राज्य इससे चिंतित हैं कि यह उनके हित में नहीं होगा। जीएसटी को अप्रैल, 2016 से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए राज्यों में कर अधिकारियों को मुस्तैद करने की जरूरत होगी। हालांकि इसकी गारंटी नहीं है कि तब तक जरूरी तकनीकी और मानव संसाधन क्षमता मुहैया करा दी जाएगी।
अगर यह विधेयक संसद में पारित हो जाता है, तब भी राज्य विधानमंडलों में इसे दो तिहाई बहुमत से पारित कराना होगा। यह इसे लागू कराने में एक बड़ी बाधा साबित हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक दल रणनीतिक रूप में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को राज्य स्तर पर रोकने का फैसला कर सकते हैं।
-ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सलाहकार
बहुचर्चित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संबंधी संविधान संशोधन (122वां संशोधन) विधेयक, 2014 पर लोकसभा में सरकार कांग्रेस का समर्थन पाने में सफल रही। लेकिन सरकार की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी, जहां सरकार के पास विधेयक पारित कराने लायक बहुमत नहीं है। जीएसटी लागू होने से घरेलू स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के विनिर्माण, बिक्री और उपभोग पर एक समान और व्यापक कर व्यवस्था लागू होगी। इसके तहत केंद्र एवं राज्यों के सभी अप्रत्यक्ष कर समाहित हो जाएंगे, जिनमें उत्पाद शुल्क, सेवा कर, बिक्री कर, मूल्यवर्द्धित कर, चुंगी, विलासिता व मनोरंजन कर और अन्य उपकर व अधिभार शामिल हैं।
इसमें राज्य और केंद्रीय जीएसटी के दोहरे ढांचे को समाहित करने की कल्पना की गई है। एकीकृत जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं पर विभिन्न राज्यों द्वारा नियंत्रित बिक्री कर की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करेगा। राज्य एवं केंद्रीय करों के बीच के अंतर को कायम रखते हुए जीएसटी सभी अप्रत्यक्ष करों को सरल बनाएगा। कथित तौर पर इसके कई लाभ हैं। मसलन, विभिन्न करों को एकीकृत करने से इसका प्रबंधन सरल हो जाएगा। जीएसटी लागू होने से सकल घरेलू उत्पाद में भी एक से दो फीसदी वृद्धि का अनुमान है और उपभोक्ताओं को भी प्रतिस्पर्धी मूल्य से राहत मिलेगी। पर राज्यों को इसकी चिंता है कि अगर केंद्रीय बिक्री कर को खत्म कर दिया जाता है, तो उनके कर राजस्व का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा। राज्यों को होने वाली इस क्षति की भरपाई के लिए शुरू के कुछ वर्षों के लिए एक सांविधानिक ढांचे की व्यवस्था की गई है। मसलन, वस्तुओं के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने की स्थिति में दो वर्षों के लिए एक फीसदी का अतिरिक्त कर लगेगा, जो केंद्र द्वारा वसूल कर राज्यों को सौंप दिया जाएगा। हालांकि कुछ राज्यों को इस दर को लेकर आपत्ति है। इसके अलावा, शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, जबकि पेट्रोलियम पदार्थ अभी जीएसटी के अधीन नहीं है। कई राज्यों के लिए ये दोनों राजस्व के बड़े स्रोत हैं।
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इसके अलावा, कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे निपटने की जरूरत होगी। मसलन, इससे एक तटस्थ राजस्व दर अस्तित्व में आएगी। तटस्थ राजस्व दर वह दर है, जिससे कर ढांचे में बदलाव होने पर भी राज्यों के राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह दर 20 से 24 फीसदी के बीच रहेगी। हालांकि सरकार अभी इस पर विचार ही कर रही है।
जीएसटी मौजूदा केंद्रीय बिक्री कर की जगह लेगा, जो उत्पादन स्थल आधारित कर है। हालांकि गुजरात एवं महाराष्ट्र जैसे विनिर्माण करने वाले राज्य इससे चिंतित हैं कि यह उनके हित में नहीं होगा। जीएसटी को अप्रैल, 2016 से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए राज्यों में कर अधिकारियों को मुस्तैद करने की जरूरत होगी। हालांकि इसकी गारंटी नहीं है कि तब तक जरूरी तकनीकी और मानव संसाधन क्षमता मुहैया करा दी जाएगी।
अगर यह विधेयक संसद में पारित हो जाता है, तब भी राज्य विधानमंडलों में इसे दो तिहाई बहुमत से पारित कराना होगा। यह इसे लागू कराने में एक बड़ी बाधा साबित हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक दल रणनीतिक रूप में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को राज्य स्तर पर रोकने का फैसला कर सकते हैं।
-ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सलाहकार
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